किसी राष्ट्र की प्रगति का सबसे अच्छा थर्मामीटर उसकी महिलाओं के प्रति उसका व्यवहार है।” - स्वामी विवेकानंद
कानूनी यात्रा और पृष्ठभूमि |
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कार्यस्थल पर किसी महिला का यौन उत्पीड़न करना केवल उनके समानता और स्वतंत्रता अधिकार का हीं हनन नहीं है, बल्कि उनके जीने के अधिकार पर भी आघात है, ऐसा माना जाता है। इससे कार्यालय का वातावरण असुरक्षित प्रतीत होने लगता है, और काम करने का माहौल भी नहीं रह जाता। परिणामस्वरूप महिलाएं काम करने से कतराने लगती हैं और इससे उनका सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण नहीं हो पाता तथा समाज के समावेशी विकास का लक्ष्य भी पीछे छूट जाता है। इसलिए, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की घटनाओं की रोकथाम करने के लिए तथा यौन उत्पीड़न के मामलों से संबंधित शिकायतों के निवारण के लिए एक कानूनी तंत्र बनाना समय की मांग थी। इसलिए, इन समस्याओं के समाधान के लिए ‘झारखंड उच्च न्यायालय लैंगिक संवेदनशीलता और आंतरिक शिकायत समिति’ का गठन किया गया है। और पढें... |