कोई भी कानून अपने अंतिम प्रभाव में महिलाओं के उत्पीड़न को कायम रखने वाला नहीं होना चाहिए ~ न्यायमूर्ति एस.बी. सिन्हा, अनुज गर्ग बनाम होटल एसोसिएशन में। भारत का (2008) 3 एससीसी 1, पैरा 47

‘झारखंड उच्च न्यायालय लैंगिक संवेदनशीलता और आंतरिक शिकायत समिति’(HCJGSICC)

रिट याचिका (सिविल) संख्या-162/2013 के मामले में भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुपालन में, ‘झारखंड उच्च न्यायालय में महिलाओं की लैंगिक संवेदनशीलता और यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) विनियम, 2021’ को माननीय झारखंड उच्च न्यायालय, रांची द्वारा अनुमोदित किया गया और अपनाया गया है जो आधिकारिक राजपत्र में इसके प्रकाशन की तारीख यानी 19.02.2022 से लागू हो गया है। इसके अलावा, उक्त विनियम के अध्याय II (विनियम संख्या 4 से 7) के तहत निहित प्रावधानों के अनुसार, ‘झारखंड उच्च न्यायालय लैंगिक संवेदनशीलता और आंतरिक शिकायत समिति’ ("समिति") का गठन किया गया है।

कानूनी यात्रा और पृष्ठभूमि

कार्यस्थल पर किसी महिला का यौन उत्पीड़न करना केवल उनके समानता और स्वतंत्रता अधिकार का हीं हनन नहीं है, बल्कि उनके जीने के अधिकार पर भी आघात है, ऐसा माना जाता है। इससे कार्यालय का वातावरण असुरक्षित प्रतीत होने लगता है, और काम करने का माहौल भी नहीं रह जाता। परिणामस्वरूप महिलाएं काम करने से कतराने लगती हैं और इससे उनका सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण नहीं हो पाता तथा समाज के समावेशी विकास का लक्ष्य भी पीछे छूट जाता है। इसलिए, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की घटनाओं की रोकथाम करने के लिए तथा यौन उत्पीड़न के मामलों से संबंधित शिकायतों के निवारण के लिए एक कानूनी तंत्र बनाना समय की मांग थी। इसलिए, इन समस्याओं के समाधान के लिए ‘झारखंड उच्च न्यायालय लैंगिक संवेदनशीलता और आंतरिक शिकायत समिति’ का गठन किया गया है।

झारखंड उच्च न्यायालय में यौन उत्पीड़न की रोकथाम करने के लिए ‘झारखंड उच्च न्यायालय में महिलाओं की लैंगिक संवेदनशीलता और यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) विनियम, 2021’ के प्रावधानों के तहत ‘झारखंड उच्च न्यायालय लैंगिक संवेदनशीलता और आंतरिक शिकायत समिति’ का गठन किया गया है जिसका उद्देश्य है झारखंड उच्च न्यायालय परिसर के भीतर दर्ज की जाने वाली किसी भी शिकायत का निवारण करना।

कई कानूनी तंत्रों में लैंगिक भेदभाव और यौन उत्पीड़न से कामकाजी महिलाओं की सुरक्षा करने पर जोर दिया गया है और ‘झारखंड उच्च न्यायालय लैंगिक संवेदनशीलता और आंतरिक शिकायत समिति’का गठन उसी के अनुरूप किया गया है। नीचे इससे संबंधित कुछ महत्वपूर्ण कानूनों की चर्चा की गई है।

भारत का संविधान

भारत के संविधान के निम्नलिखित अनुच्छेद अपने नागरिकों को कतिपय मौलिक अधिकारों की गारंटी देते हैं जिनमें कामकाजी महिलाएं भी शामिल हैं।

  • अनुच्छेद 14 -विधि के समक्ष समता एवं विधियों के समान संरक्षण

  • अनुच्छेद 15-धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध।

  • अनुच्छेद 19(1)(जी) - कला के अधीन सभी नागरिकों को कोई भी पेशा अपनाने या कोई व्यवसाय, व्यापार या व्यवसाय करने का अधिकार। 19 (6) जो राज्य द्वारा लगाए जा सकने वाले प्रतिबंध की प्रकृति का वर्णन करता है।

  • अनुच्छेद 19(1)(g)- सभी नागरिकों को कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारोबार करने का अधिकार, अनुच्छेद 19(6) के अधीन, जो राज्य द्वारा लगाए जा सकने वाले प्रतिबंधों की प्रकृति की वर्णन करता है, होगा।

  • अनुच्छेद 21-प्राण या दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार- लैंगिक संवेदनशीलता और यौन उत्पीड़न के परिणामस्वरूप यौन उत्पीड़न से मुक्त सुरक्षित वातावरण में कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारोबार करने का अधिकार, जैसा की संविधान के अनुच्छेद 19(1)(g) में वर्णित है, समेत उपरोक्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो जाता है।

अंतर्राष्ट्रीय समझौते

लिंग के आधार पर भेदभाव के खिलाफ संवेदनशीलता और यौन उत्पीड़न के खिलाफ सुरक्षा के साथ-साथ सम्मान के साथ काम करने का अधिकार अंतर्राष्ट्रीय समझौते और साधनो जैसे 'महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन (सीईडीएडब्ल्यू) द्वारा सार्वभौमिक रूप से मान्यता प्राप्त मानवाधिकार हैं। महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर वियना घोषणापत्र को 25 जून, 1993 को भारत सरकार द्वारा अनुमोदित किया गया था।

मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993

मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 की धारा 12(d) सपठित धारा 12(f) के तहत यह कहा गया है कि महिलाओं को लैंगिक समानता, सम्मान के साथ काम करने और यौन उत्पीड़न या दुर्व्यवहार से सुरक्षा एवं संरक्षण कामकाजी माहौल का अधिकार है।